Mallikarjuna Jyotirlinga temple – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इन ज्योतिलिंग में सोमनाथ ज्योतिलिंग पर्थम मन माना जाता है। महादेव के 12 ज्योतिलिंग का खास महत्व है। ये आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में दक्षिण दिशा में स्थित है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शैल नामक पर्वत पर स्थित है। ये पर्वत कृष्णा नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक ग्रंथो में इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। पुराणों ओर इतिहास में इस स्थान का विशेष महत्व माना गया है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का महत्व । Mallikarjuna Jyotirlinga temple Importance in Hindi
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। ये स्थान धार्मिक श्रद्धालुओं ओर पर्यटकों के लिए बहुत विशेष है। ये भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। ये स्थल पर्यटक दृष्टि से भी बहुत अच्छा है। यहां साल भर लोग यहां घूमने आते है।यहां आकर श्रद्धालुओं के मन को शांति मिलते है। लोग भगवान शिव के इस रूप में खो जाते है। ओर वे अपने सभी दुख – दर्द भूल जाते है। उन्हें यहां बहुत ही सुखद एहसास होता है। शैल पर्वत कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। इस नदी को पातालगंगा भी कहते है।
पातालगंगा मंदिर के पूर्व द्वार से करीब 2 मील की दूरी पर बहती है। इस नदी के एक पार होने के बाद 852 सीढियां बनी हुई है। इस नदी में यात्री स्नान करते है। लोगो की धार्मिक विचार धारा के अनुसार इस नदी में स्नान करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते है। तथा वह अनन्त सुख प्राप्त करता है। इसी गंगा के पवित्र जल को ही भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। कुछ आगे चलकर ये नदी दो अलग अलग नालो में प्रवाहित होती है। इस स्थान को त्रिवेणी कहा जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर कहा स्थित है ।Where is Mallikarjuna Jyotirlinga temple located?
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग राजधानी दिल्ली से 1685 किलोमीटर कुर्नूल के पास है। ये राजमार्ग N H 44 से जुड़ा हुआ है। आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 250 किलोमीटर दूर स्थित है। हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथो के अनुसार 51 शक्तिपीठों माने जाते है। ये शक्तिपीठ सभी ज्योतिर्लिंगो में अलग अलग आकार व प्रवृति में पाए जाते है। मल्लिकार्जुन शक्तिपीठों में 18 महाशक्तिपीठ का अपना अलग महत्व है। इसके 4 शक्तिपीठों को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। जिनमे श्रीशैल का विशेष महत्व है। भ्रमराम्बादेवी – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का सबसे पहला शक्तिपीठ है।
भ्रमराम्बादेवी :
भ्रमराम्बादेवी शक्तिपीठ मल्लिकार्जुन मंदिर से 2 मील की दूरी पर स्थित है। इस शक्ति पीठ पर मां सती की ग्रीवा गिरी थी। इसलिए ये स्थल बहुत ही महतत्वपूर्ण माना जाता है।
शिखरेश्वर-
शिखरेश्वर मल्लिकार्जुन से लगभग 6 किमी दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2830 फीट है। ये शिखरेश्वर मंदिर श्री शैलम मंदिर प्रमुख पर्यटक स्थल है। के पास में स्थिल मंदिर है। यह मार्ग कठिन है। यह मंदिर ‘श्री वीर शिखर स्वामी’ को समर्पित है। जो यहां के स्थानीय निवासी थे।
विल्वन-
विल्वन- शिखरेश्वर से 6 मील पर एकम्मा देवी का मंदिर घोर वन में है। यहाँ मार्ग दर्शक एवं सुरक्षा के बिना यात्रा संभव नहीं। हिंसक पशु इधर बन में बहुत हैं।
श्रीशैल-
श्रीशैल यह पूरा क्षेत्र घने जंगल वाला है। अतः इस वन्य क्षेत्र से केवल मोटर से जाया जाता है। इसे मोटर मार्ग भी कहते है। पैदल यहाँ की यात्रा केवल शिवरात्रि पर होती है
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम – The Name of 12 Jyotirlingas of Lord Shiva
हमारे भारत देश को मंदिरों का देश कहा जाता है। देश भर में लाखों मंदिर और धार्मिक धाम हैं। लेकिन हिन्दू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग का सबसे खास महत्व है। देश के अलग अलग 12 स्थानों पर स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग है। अपनी देश की एकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदू धार्मिक मंत्याओ के अनुसार जो व्यक्ति पूरे 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लेता है। उसके सभी संकट और बाधाएं दूर हो जाती है।
और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इतनी लम्बी धार्मिक यात्रा करना , और सभी 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना सब के लिए सभव नहीं होता। भाग्यशाली श्रधालुओ को इन 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। हिन्यू गर्न्थो के अनुसार भगवान शिव शंकर ने जिन 12 स्थानों पर अवतार लिए थे। और अपने भक्तों को दर्शन दिए उन जगहों पर इन ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है। उन ज्योतिलिंग का नाम इस प्रकार है ।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम
1 .सोमनाथ ज्योतिर्लिंग– गिर सोमनाथ इन गुजरात
2. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – गुजरात में दारुकावनम
3. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग – पुणे इन महाराष्ट्र
4. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग – महाराष्ट्र ,नासिक
5. बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – झारखण्ड में देवघर
6. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश में उज्जैन
7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – उत्तर प्रदेश में वाराणसी
8. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग– केदरनाथ इन उत्तराखण्ड
9. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग– औरंगाबाद इन महाराष्ट्र
10.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश में खंडाव
11 रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग – तमिलनाडु में रामेश्वरम द्वीप
12 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की कथा- Mallikarjuna Jyotirlinga temple Stories in Hindi
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की एक पौराणिक कथा है। ओर इस कथा में भगवान शिव ओर उनके परिवार के सुंदर वाक्यों को प्रस्तुत किया है। देवताओं से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। जिसके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे। भगवान शिव और माता पार्वती के दो पुत्र थे। जिनका नाम गणेश और कार्तिकेय था। एक समय की बात है जब गणेश और कार्तिकेय आपस में विवाह के लिए झगड़ रहे थे। उनका विवाद बढ़ता गया लेकिन उसका कोई हल उन्हें समझ में नहीं आया। इसलिए वे दोनों समाधान के लिए अपने माता-पिता के पास पहुंचे।
इसका समाधान करने के लिए माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि तुम दोनों में से जो कोई भी इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आएगा। उसी का विवाह पहले होगा। माता के ये वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने लक्ष्य की ओर निकल पड़े। वे शीघ्र पृथ्वी की परिक्रमा करना के लिए अपने वाहन पर सवार हो गए। लेकिन गणेश जी अभी तक उसी स्थान पर खड़े थे। वे मोटे होने के कारण और उनका वाहन चूहा होने के कारण जल्दी परिक्रमा करने कैसे जाते।
लेकिन गणेश सबसे बुद्धिमान देवता थे। उन्होंने अपनी तीव्र बुद्धि का उपयोग किया। उनके मस्तिष्क में एक विचार आया और उन्होंने अपने माता-पिता से एक स्थान पर बैठने को कहा। फिर उन्होंने माता -पिता की सात बार परिक्रमा की। इस तरह माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गए। और उन्होंने शर्त जीत ली।पुत्र गणेश की इस चतुराई को देखकर माँ पार्वती और शिव जी बहुत प्रसन्न हुए।
ओर फिर गणेश जी का विवाह करा दिया गया। ओर जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस लौटे तो वे बहुत दुखी हुए। क्योंकि उनके आने से पूर्व गणेश जी का विवाह समाप्त हो चुका था। कार्तिकेय ने माता-पिता का आशीर्वाद लिया। ओर वहा से चले गए। चरण छुए और वहां से चले गए। वे क्रोधित होकर क्रौन्च पर्वत जाकर बैठ गए। जब इस बात की सूचना माँ पार्वती और शिव जी को लगी तो उन्होंने नारद मुन्नी को कार्तिकेय को मनाकर अपने पास लाने को कहा।
नारद जी क्रौन्च पर्वत पर पहुंचे और कार्तिकेय को मनाने लगे। लेकिन उनके लाख प्रयत्न करने पर भी कार्तिकेय नहीं माने। और नारद जी निराश होकर वापस माँ पार्वती और शिव जी के पास पहुंचे और सारा वृतांत कह सुनाया। सारी बाते सुनकर माता बहुत दुखी हुईं। स्वयं शिव जी के साथ क्रौंच पर्वत पर पहुंची। माता- पिता के क्रौंच पर्वत पर आने की खबर सुनकर कार्तिकेय उनके आने से पहले ही 12 कोस दूर चले गए।
तभी शिव जी ने वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। ओर अलग अलग स्थान पर कार्तिकेय की तलाश में अपने ज्योतिर्लिंग फैला दिए। वह स्थान तभी से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से प्रसिद्ध हुआ। क्योंकि पौराणिक ग्रंथो के अनुसार मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, ओर ‘अर्जुन’ भगवान शिव का है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ नाम ये ज्योतिर्लिंग का पूरे विश्व प्रसिद्ध हो गया ।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा-Mallikarjuna Jyotirlinga temple Stories in Hindi
धार्मिक ग्रंथो में एक अन्य कथा के अनुसार कौच पर्वत के नजदीक राजा चन्द्रगुप्त का राज्य था। एक समय की बात है । राजा चन्द्रगुप्त की कन्या किसी गंभीर संकट में उलझ गई। इस संकट से बचने के लिए वह कन्या पर्वत राज पर पहुंच गई और आराधना में लीन हो गई। कन्या अपना जीवन निर्वाह करने के लिए जंगल से फल सब्जी खाती थी ओर इस तरह उसका जीवन चलता था । उसके पास एक गाय थी वह गया कि सेवा बहुत करती ओर उसका ख्याल रखती। कुछ दिन सही चलता रहा। फिर कुछ समय बाद गाय के साथ कुछ घटना होने लगी । हर रोज कोई गाय का दूध निकाल लेता था।एक दिन उस कन्या ने अपनी गाय श्यामा का दूध निकलते हुए किसी चोर को देखा।
उस देख कर वह उस पर क्रोधित होकर उसे मारने को गौ के पास पहुंची। तो वह बहुत आश्चर्य से दंग रह गई।उस जगह उसे एक शिवलिंग के अलावा कुछ भी नहीं दिखा। उसके बाद उसने उस राजकुमारी कन्या ने उस शिवलिंग ऊपर मंदिर स्थापित करवाया। ये मंदिर बहुत ही सुन्दर ओर शानदार था। आज उसी शिवलिंग को पूरे विश्व में मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 2 हज़ार वर्ष पुराना है। इस मंदिर के दर्शन करने भारतीय शासन काल में हुए सभी राजा महाराजाओं ने किए है। ओर यहां वर्तमान में भी लाखो श्रद्धालुओं दर्शन करने आते है। ये पवित्र जगह धार्मिक स्थल के साथ एक पर्यटक स्थल भी है।
अन्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल
मुख्य मंदिर के बाहर पीपल पाकर का सम्मिलित वृक्ष है। उसके आस-पास चबूतरा है। दक्षिण भारत के दूसरे मंदिरों के समान यहाँ भी मूर्ति तक जाने का टिकट कार्यालय से लेना पड़ता है। पूजा का शुल्क टिकट भी पृथक् होता है। यहाँ लिंग मूर्ति का स्पर्श प्राप्त होता है। मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती मंदिर है। इन्हें मल्लिका देवी कहते हैं। सभा मंडप में नन्दी की विशाल मूर्ति है।
मल्लिकार्जुन मंदिर तक कैसे पहुँचें? How to reach the Mallikarjuna Jyotirlinga Temple
मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुंचना अपेक्षाकृत सुविधाजनक है, क्योंकि यह परिवहन के विभिन्न साधनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यह मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के श्रीशैलम शहर में स्थित है। मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुंचने के विभिन्न रास्ते इस प्रकार हैं:
मल्लिकार्जुन मंदिर सड़क द्वारा कैसे जाये :
श्रीशैलम सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और आंध्र प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के विभिन्न शहरों और कस्बों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। हैदराबाद, कुरनूल, विजयवाड़ा और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों से श्रीशैलम तक नियमित बस सेवाएँ संचालित होती हैं। मंदिर तक आरामदायक और निजी यात्रा के लिए निजी टैक्सियाँ और कैब सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।
मल्लिकार्जुन मंदिर ट्रेन से कैसे जाये :
श्रीशैलम का निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कपुर रोड रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से, आगंतुक श्रीशैलम तक पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। दूसरा विकल्प कुरनूल रेलवे स्टेशन तक पहुंचना है, जो लगभग 180 किलोमीटर दूर है, और फिर सड़क मार्ग से श्रीशैलम की यात्रा जारी रखें।
मल्लिकार्जुन मंदिर हवाईजहाज से कैसे जाये :
श्रीशैलम का निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद में राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 220 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से, कोई टैक्सी किराए पर ले सकता है या श्रीशैलम तक पहुंचने के लिए बस ले सकता है। हवाई अड्डे से यात्रा में ग्रामीण इलाकों और नल्लामाला पहाड़ियों के सुरम्य दृश्य दिखाई देते हैं।
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