चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

24/10/2022

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History चित्तौड़गढ़ त्याग और बलिदान की उन सैंकड़ों कहानियों का गवाह रहा हे , अपने अतीत पर चित्तौड़गढ़ को अभिमान है इस वीर भूमि चित्तौडगढ़ में जन्म लेन वाले विरो ने अपनी जन्मभूमि के सामन में अपने लहू देकर मेरा सम्मान किया ! चित्तौड़गढ़ आज मैं अपने इतिहास वीरतापूर्ण लड़ाइयों,  महिलाओं के अद्भूत  साहस की कई इतिहास रहे, चित्तौड़ की इस पावन धरा ने तो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ ही लड़ना आज भी स्कूलों के पाठ्य पुस्तक में सिखाया जाता है ! चित्तौड़गढ़ के वीर प्रतापी राजा  महाराणा प्रताप के खिलाफ सभी पडोसी राजाओ और सगे संबंधी मुगल अकबर के साथ हो जाने के बाद भी महाराणा प्रताप का सेनापति बनकर पठान योद्धा हाकम खान सूर ने ही युद्ध में बलिदान दिया .

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ विशाल किला एक भव्य और शानदार संरचना है जो चित्तौड़गढ़ के शानदार इतिहास को बताता है। इतिहास के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य ने 7 वीं शताब्दी के दौरान करवाया  था। यह शानदार किला 180 मीटर ऊँची पहाड़ की पर स्थित है और लगभग 700 एकड के छेत्रफल  में फ़ैली हुई है।  यह वास्तुकला प्रवीणता का एक प्रतीक है जो कई विध्वंसों के बाद भी बचा हुआ है। किले तक पहुँचने का रास्ता आसान नहीं है; आपको किले तक पहुँचने के लिए एक खड़े और घुमावदार पहाड़ी मार्ग से एक मील चलना होता है । इस किले में सात नुकीले लोहे के मजबूत  दरवाज़े हैं जिनके नाम हिंदू देवताओं के नाम पर है । इस किले में कई सुंदर मंदिरों के साथ साथ रानी पद्मिनी और महाराणा कुम्भ के शानदार महल हैं। किले में कई जल निकाय हैं जिन्हें वर्षा या प्राकृतिक जलग्रहों से पानी मिलता रहता है। यह इस शहर का प्रमुख पर्यटन स्थल है।

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History
चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ का किला

चित्तौड़गढ़ को सातवीं सदी में मौर्यवंश के शासक चित्तरांगन मौरी ने जब 180 मी. ऊंचाई और 700 एकड़ में फैले इस पहाड़ी पर बसाया था ! चित्तौड़गढ़ ने जो सबसे घातक हमला झेला वो 14 वीं सदी की शुरुआत में था। रानी पद्मिनी की खूबसूरती से आकर्षित होकर अलाउद्दीन खिलजी हर हाल में रानी पद्मिनी को पाना चाहता था। इस पागलपन में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया।  महाराजा रतन सिंह और उनकी सेनिको ने बड़ी बहादुरी से आखरी साँस तक लड़ाई लड़ी, लेकिन उनको खिलजी केसामने हार का सामना करना पड़ा और मारे गए। दरअसल अलाउद्दीन का यह प्रयास सफल नहीं हुआ क्योंकि चित्तौड़गढ़ किले के अग्नि कुंड में रानी पद्मिनी ने अपनी साहिलियो के साथ जौहर यानि आत्मदाह कर लिया।

चित्तौड़गढ़ पर दोबारा हमला महाराजा बिक्रमजीत के शासन में 16 वीं सदी के मध्य में हुआ। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने राजपूत राजाओ को हरा कर खुद चित्तौड़गढ़ का राजा घोसित कर दिया तब रानी कर्णवती के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर कर फिर इतिहास दोहराया । तब उनके बेटे उदय सिंह जो की उस समय सिर्फ शिशु थे, उन्हें बूंदी भेजा गया और फिर  वो बूंदी और चित्तौड़गढ़ के राजा बने।

मुगल शासक अकबर ने 1567 में चित्तौड़गढ़ पर हमला कर कब्जा कर लिया। उदयसिंह ने इसका प्रतिरोध नहीं किया और पलायन कर गए और नया शहर उदयपुर बनाया। हालांकि दो किशोरों पत्ता और जयमल के नेतृत्व में राजपूतों ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और मारे गए। अकबर के सेनिको ने चित्तौड़गढ़ किले को लूटा और बुरी तरह तबाह कर दिया।

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

राणा वंश के सिसोदियाओं राणा हमीर 1325 में  ने इसे अपना किला बनायाने , और राणा वंश यानी सिसोदिया वंश का शासन चलना शुरु हुआ. चित्तौड़गढ़ के उपर सबसे ज्यादा सिसोदिया वंश ने ही राज्य किया. और इस वंश में कई प्रतापी राजा हुए, राजा रतन सिंह से लेकर महाराणा सांगा. महाराणा कुंभा भी चित्तौड़गढ़ के महान राजाओं में से एक हुए. इन राजाओं ने चित्तौड़गढ़ को एक अलग पहचान दिलवाई! और  महराणा प्रताप का नाम तो चित्तौड़गढ़ के राजा के तोर पर आज भी बड़े शान से लिया जाता है !

 

चितौड़गढ़ का किला अभेद्य था, पहाड़ी परी स्थित  होने के साथ-साथ इस किले के चारो और एक विशाल दिवार  हुई थी, किले के में अंदर जाने के लिए  सात मजबूत दरवाजे बनाए गये थे. दरअसल  दुश्मनों के लिए किले के अंदर जाना नामुमकिन था. लेकिन, विशाल मैदान के बीच में पहाड़ी पर ये किला बना था. जिसकी वजह से दुश्मन विशाल मैदान में डेरा डाल देते थे. और किले के अंदर खाने की सप्लाई रोक देते थे. नतीजा किले के दरवाजों को खोलने के लिए राजाओं को विवश होना पड़ता था. और शत्रुओं की विशाल सेना होने की वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ता था !

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ किले का आकर्षण

वीरो की धरती राजस्थान का ऐतिहासिक और खूबसूरत चित्तौड़गढ़ किले को राजस्थान में आकर नही देखना तो बहुत कुछ मिस करने जैसा रहेगा है। इस किले की विशालता और ऊंचाई को देखते हुए कहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ का पूरा किला देखने के लिए हौसले भी मजबूत होने चाहिएं।  चित्तौड़गढ़ किले का विशेष आकर्षण इस किले के सात विशाल दरवाजे हैं। ये दरवाजे इतने विशाल आकार के है जो किसी दूसरे किले में देखने को नहीं मिलते।

दुर्ग परिसर में सैंकड़ों ऐतिहासिक और प्रचीन मंदिर हैं। पहाड़ की शिखा पर किले के परिसर में कई जलाशय भी किले को और आकर्षण और खूबसूरत बनाते हैं। इस किले सबसे खास आकर्षणों हैं यहां के दो पाषाणीय स्तंभ, जिन्हें कीर्ति स्तंभ और विजय स्तंभ के नाम से जाना जाता है। अपनी खूबसूरती, स्थापत्य और ऊंचाई से ये दोनो टॉवर पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। चित्तौड़गढ़ के इस किले के विभिन्न कला महल  का नायाब नमूना हैं।

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चित्तौड़गढ़ का इतिहास-Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ किला देखने जा राहे हो तो किले के परिसर में बना राणा कुभा का महल  को भी देखे । इस किले का का सबसे खास और खूबसूरत हिस्सा यह महल है। पर्यटन और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यह महल बहुत महत्व के हैं। महल के अंदर झीना रानी का महल, सुंदर शीर्ष गुंबद और छतरियां, झीना रानी महल के पास गौमुख कुंड आदि खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं। किले में इसी कुंड के पास किले की रानियों और महिलाओं ने जौहर किया था। मेवाड़ी सेनाओं के मुगलों से परास्त होने के बाद अपनी आन बान और इज्जत बचाने के लिए क्षेत्राणी महिलाएं बड़े पैमाने पर जलती आग में कूद गई थी।

कुंभश्याम मंदिर और विजय स्तंभ

इस विशाल दुर्ग के दक्षिणी  में कुंभ श्याम मंदिर बना हुआ है। यह मीरां बाई का ऐतिहासिक और एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसी मंदिर के नजदीक विजय स्तंभ बना हुआ है। यह नौ मंजिला शानदार स्तंभ राणा कुभा ने सन 1437 में मालवा  के सुल्तान से यूद्ध पर विजय प्राप्त करने के बाद जित का प्रतीक के तौर पर बनवाया था।

महल एवं संग्रहालय

इस किले में आम प्रजा के लिए बनवाया गया शांतिनाथ स्थल, दीवान-ए-आम एक खूबसूरत मुगल स्थापत्य से बने चबूतरे पर स्थित खूबसूरत जैन स्थल और फतेह प्रकाश पैलेस भी आकर्षण के प्रमुख केंद्र हैं। फतेह प्रकाश पैलेसे में मध्ययुगीन अस्त्र शस्त्रों, मूर्तियों, कलाओं और लोकजीवन में काम आने वाली प्राचीन वस्तुओं का बेहतरीन संग्रह किया गया है। यह संग्रहालय राणा कुंभा महल की रोड के ही एक किनारे पर स्थित है और बहुत ही खूबसूरत है। पर्यटकों के लिए यह स्थल सुबह 10 बजे खुलता है और शाम साढे 4 बजे बंद होता हे ।

पदि्मनी महल

पदमनी महल इस किले का खास हिस्सा है। दुर्ग परिसर के बीच एक छोटे सरोवर के निकट स्थित यह महल बहुत ही खूबसूरत है। इसी महल के नजदीक सूर्य भगवान को समर्पित एक ऐतिहासिक मंदिर है, यह मंदिर कालिका माता का मंदिर है, आठवीं सताब्दी के इस सुंदर छोटे मंदिर का स्थापत्य देखने बहुत मन मोहक है। पदि्मनी महल का जनाना महल शीशों से निर्मित कक्षों से भरा हुआ है। इन छोटे छोटे शीशमहलों को देखकर पर्यटक मुग्ध हो जाते हैं।इस किले के सूरजपोल और कीर्ती स्तंभ से चारों ओर अरावली की हरी-भरी पहाड़ियों का नजारा किसी स्वर्ग से कम नहीं है । जीवन में एक बार चित्तौड़गढ दुर्ग को जरूर देखना चाहिए। यह बहुत ही दर्शनीय है।

 

 
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